बिलासपुर । बेलतरा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 17 वार्ड बिलासपुर नगर निगम सीमा में शामिल है। जिन वादों और भरोसे के साथ ग्राम पंचायतों को निगम में शामिल कर वार्ड बनाए गए,बीते तीन वर्ष के दौरान ऐसा कुछ नहीं हुआ। विकास कार्य के लिए वार्डवासी तरसते रहे। धरना प्रदर्शन भी किया। विरोध भी जताया। इसके बाद भी निगम में काबिज कांग्रेस की शहर सरकार ने विकास के नाम पर इन वार्डों में एक ईंट नहीं कर रख पाई। वार्डवासियों की चुप्पी जब टूटी तो इसका खामियाजा बेलतरा विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस प्रत्याशी को भुगतना पड़ा। निगम के इन वार्डों में चले एंटीइंकंबेंसी का सीधा असर सत्ताधारी दल के उम्मीदवार पर ही देखने का मिला।
बेलतरा विधानसभा के वोटों की गिनती के लिए जिला निर्वाचन कार्यालय ने 18 चक्र तय किया था। तीन दिसंबर को कोनी स्थित इंजीनियरिंग कालेज में जब वोटों की गिनती शुरू हुई तब जिले के पांच विधानसभा क्षेत्रों में शुरुआत से ही कांग्रेस के उम्मीदवार पिछड़ गए थे। बेलतरा में स्थिति अलग थी। शुरुआती दौर से ही कांग्रेस के उम्मीदवार विजय केशरवानी अपने निकटम प्रतिद्वंदी भाजपा के सुशांत शुक्ला से बढ़त बनाए हुए थे। ग्रामीण क्षेत्र में यह दबदबा विजय के नाम रहा और बढ़त बनाए रहे। यह वह दौर था जब जिले की पांच सीटों पर भाजपा को लगातार बढ़त मिल रही थी। कांग्रेस के रणनीतिकार और दिग्गज भी यह मानकर चल रहे थे कि जिले में जीत का खाता बेलतरा से खुलेगा। ग्रामीण क्षेत्र के मतदाताओं पर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने जो भरोसा कायम किया था वह बरकरार भी रहा। ग्रामीण क्षेत्र के वोटों की गिनती 11 वें चक्र में पूरी हुई। कांग्रेस प्रत्याशी विजय केशरवानी साढ़े तीन हजार वोटों से आगे चल रहे थे। आखिरी के सात चक्र की गिनती शहरी इलाकों की होनी थी जिसमें निगम के 17 वार्ड हैं। शहरी इलाके के यही वार्ड भाजपा के लिए निर्णायक साबित हुआ। इन 17 वार्डों में 13 ऐसे हैं जहां कांग्रेस के पार्षद काबिज हैं। हार के बाद चल रहे मंथन और पड़ताल से एक बात खुलकर सामने आ रही है कि इन वार्डों में बीते तीन साल के दौरान विकास के कार्य हुए ही नहीं है। पार्षद अब दबी जुबान से यह भी कहने लगे हैं कि सत्ताधारी दल के पार्षद होने के बाद उनके साथ विपक्षी जैसा व्यवहार हो रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान यह बात खुलकर सामने भी आई थी जब कांग्रेस प्रत्याशी के साथ वार्ड में जनसंपर्क के दौरान मोहल्लेवासियों के गुस्से का सामना पार्षदों को करना पड़ रहा था। छोटी-छोटी समस्याएं भी हल नहीं हो पा रही है। मोहल्लेवासियों की तब नाराजगी भी खुलकर सामने आई थी। बड़ी पंचायतों का अस्तित्व समाप्त कर वार्ड बनाने के बाद वहां के लोगों की समस्याओं को सुलझाया ही नहीं गया। निगम ने वास्ता ही नहीं रखा। मोहल्लेवासियों की नाराजगी सीधे-सीधे कांग्रेस प्रत्याशी को झेलनी पड़ी।