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बस्तर के आदिवासियों को आत्मनिर्भर बना रहा कड़कनाथ

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रायपुर .इन दिनों छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासियों को आत्मनिर्भर बना रहा है कड़कनाथ .बस्तर संभाग में पाया जाने वाला विशेष प्रजाति का मुर्गा कड़कनाथ अब यहां के आदिवासियों की रोजी-रोटी का अहम साधन बनता जा रहा है। भले ही इसका दाम साढ़े सात सौ रुपए किलो है, लेकिन काले रंग के इस मुर्गे की मांग देश के कोने-कोने तक है। इसके मांस का स्वाद ही ऐसा

यही कारण है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके जरिये आदिवासियों को आत्मनिर्भर बनाने की योजना पर अमल करना शुरू कर दिया है। बस्तर जिले में अब इसका पालन व्यापक पैमाने पर किया जाने लगा

कड़कनाथ खास तौर पर बस्तर इलाके में पाया जाता है। इसका रंग काला होता है और मांस भी। यहां तक की रक्त भी काला ही होता है। आम तौर पर यह वजनी होता है। अन्य देसी व पोल्ट्री फार्म के मुर्गों से यह बहुत अलग होता है। गर्दन और टांग मोटी होती है। इन खूबियों की वजह से ही इसकी मांग बढ़ती जा रही है। बस्तर जिला प्रशासन हीरानार में कड़कनाथ हब विकसित कर रहा है। आदिवासी महिलाएं यहां कुक्कुट पालन का जिम्मा लेकर आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं।

 

कड़कनाथ के लजीज स्वाद की खुशबू विदेश तक भी पहुंच चुकी है। वहीं, हैदराबाद में इसकी बड़ी मांग है। 750 रुपए किलो की दर से हैदराबाद की एक कंपनी को मुर्गे -मुर्गियों की पूर्ति यहां से की जा रही है। यह कंपनी कड़कनाथ मांस की पैकेजिंग कर इसे ठंडे देशों में निर्यात कर रही है। विशेष डिमांड पर कड़कनाथ के अंडे 50 रुपए प्रति नग में भी बिक रहे हैं।

 

दंतेवाड़ा की आदिवासी महिलाएं गीदम ब्लॉक के ग्राम हीरानार में एक साथ कड़कनाथ के 10 पोल्ट्री फार्म यूनिट को तैयार कर चुकी हैं। करीब 100 महिलाओं का समूह प्रशासन से अनुदान लेकर कड़कनाथ कुक्कुट पालन कर रहा है। यही नहीं, हीरानार सहित जिले के 21 महिला स्व-सहायता समूहों सहित 73 किसान कुक्कुट पालन कर रहे हैं।


 

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