नई दिल्ली। प्रयागराज महाकुंभ मेला शुरु हो चुका है और इसमें करोड़ों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। कुंभ मेला हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और सबसे पवित्र मेला है। जो कि हर 12 साल में लगता है। इसका आयोजन विशेष रूप से चार प्रमुख स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है। प्रयागराज के बाद अगला कुंभ नासिक में गोदावरी नदी के तट पर लगेगा। जो कि 2027 में आयोजित किया जाएगा। यहां पिछली बार 2015 में जुलाई से सितंबर तक कुंभ मेला लगा था।
ऐसी मान्यता है कि प्रयागराज में जब सूर्य मकर राशि और गुरु वृष राशि में होते हैं तब गंगा, युमना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र तट पर महाकुंभ लगता है। कहा जाता है कि जब कुंभ राशि में गुरु और मेष राशि में सूर्य हो तब हरिद्वार में गंगा के तट पर कुंभ लगता है। मान्यता है कि जब सिंह राशि में गुरु और सूर्य हो तब नासिक में गोदावरी नदी के तट पर कुंभ लगता है। वहीं जब सिंह राशि में गुरु और मेष राशि में सूर्य हो तब उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर कुंभ लगता है।
नासिक कुंभ मेले का इतिहास सदियों पुराना है। हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक यह आयोजन उस समय की याद दिलाता है जब देवता और राक्षस अमरता के अमृत के लिए लड़ रहे थे। लड़ाई के दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों- नासिक, प्रयागराज, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं। ऐसा माना जाता है कि ये चार स्थान हैं जहां कुंभ मेला लगता है।
नासिक कुंभ मेला गोदावरी नदी के तट पर लगता है। इसे भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। नासिक कुंभ मेले का पहला रिकॉर्ड 17वीं शताब्दी में दर्ज किया गया था और तब से यह लोकप्रियता में बढ़ गया है। हर 12 साल में लाखों लोग इस आयोजन में शामिल होते हैं। नासिक कुंभ मेला कई कारणों से भी अहम है। एक तो जब लोग यहां एक साथ आकर अपनी आस्था का जश्न मना सकते हैं। यह ऐसा समय भी है जब लोग पवित्र गोदावरी नदी में डुबकी लगाकर अपने पापों को धो सकते हैं।