स्वास्थ्य विभाग ने वर्ष-2025 तक प्रदेश को पूर्ण रूप से टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन तेजी से बढ़ रहे क्षय रोग (टीबी) के मरीजों ने चिंता बढ़ा दी है। 10 दिनों के भीतर ही टीबी के 1,520 नए मरीज सामने आए हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, साढ़े चार माह में 14,220 मरीज मिल चुके हैं।
विगत वर्ष टीबी के करीब 38 हजार मरीज मिले थे। वहीं, अब तक 532 से अधिक एमडीआर (मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट) केस की पहचान भी की गई है। इसमें मृत्यु दर 60 प्रतिशत तक है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना काल के बाद से टीबी के मरीज तेजी से बढ़े हैं। इसके कारणों को जानने के लिए शोध की जरूरत है।
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया से टीबी की बीमारी होती है। यह एक से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाली बीमारी है। यह उन लोगों को जल्दी अपनी चपेट में ले लेता है, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। टीबी की दवा को बीच में बंद नहीं किया जा सकता है। विभिन्न कैटेगरीज में छह माह से दो साल तक चलने वाली दवा को मरीज के वजन के हिसाब से दी जाती है।
यदि दवा में अंतराल हो जाए तो मरीज में ड्रग रेसिस्टेंट टीबी डेवलप हो सकती है, जो कि बेहद खतरनाक हो सकता है। टीबी मरीजों को खाली पेट ही दवा खानी होती है। कोर्स के बीच में लंबा अंतराल होने पर मरीजों का दोबारा फालोअप होता है। केंद्र से नहीं हुई दवाइयों की आपूर्ति: प्रदेश के शासकीय अस्पतालों में टीबी की दवा नहीं मिलने से मरीज बैरंग लौटने को मजबूर हैं। सरकारी अस्पतालों में फरवरी से ही टीबी दवाओं की किल्लत शुरू हो गई थी।
कुछ समय तक तो अस्पतालों में जैसे तैसे काम चलता रहा, लेकिन पिछले एक माह से दवा बिल्कुल खत्म हो चुकी है। रायपुर में भी केवल एक सप्ताह की दवा बची हुई है। टीबी के मरीजों को दी जाने वाली दवाओं की आपूर्ति केंद्र सरकार के टीबी डिविजन द्वारा किया जाता है, जो ठप है।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि टीबी की दवा के लिए टीबी डिविजन को कई बार पत्र लिखा जा चुका है। छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश में दवा की आपूर्ति नहीं हो रही है। वहां से निर्देश मिलने के बाद ही प्रदेश के सभी मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को जिला स्तर पर दवा खरीदी के निर्देश दिए गए हैं।
जनवरी से 19 मई 2024 तक मरीजों की स्थिति
बालोद- 303, बलौदाबाजार- 451, बलरामपुर-281, बस्तर- 524, बेमेतरा- 296, बीजापुर- 203, बिलासपुर- 1,022, दंतेवाड़ा- 267, धमतरी- 522, दुर्ग- 1,458, गरियाबंद- 279, गौरेला-पेंड्रा-मरवाही- 125, जांजगीर-चांपा- 359, जशपुर- 418, कवर्धा- 333, कांकेर- 385, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई- 129, कोंडागांव- 260, कोरबा- 669, कोरिया- 89, महासमुंद- 553, मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर- 176, मोहला-मानपुर- अंबागढ़ चौकी- 119, मुंगेली- 267, नारायणपुर- 121, रायगढ़- 759, रायपुर- 1944, राजनांदगांव- 419, सक्ती- 265, सारंगढ़-बिलाईगढ़- 277, सरगुजा- 508, सुकमा- 232, सूरजपुर- 237।
सेंट्रल टीबी डिविजन को दवाओं के लिए मांग पत्र भेजा गया है। दवाओं के जल्द ही आने की उम्मीद है। स्थानीय स्तर पर खरीदी के निर्देश दिए गए हैं।
कोरोना काल के बाद टीबी के मरीजों में बढ़ोतरी हुई है। इसके कारणों के लिए शोध की जरूरत है। दवा बीच में रोकने से संक्रमण तेजी से फैलता है।