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कार सेवा के जोश जूनून व उमंग ने अयोध्या कूच कराया,ददूआ डाकू के गांव में भी हुई सेवा, कार सेवको की जुबानी अनूठी दस्तान

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*कार सेवा के जोश जूनून व उमंग ने अयोध्या कूच कराया*

राजनांदगांव । अयोध्या में कार सेवा करने के लिये 1990 में गये राजनांदगांव जिले के कई कार सेवक उस समय की याद को लेकर आज भी चर्चा करते है कि उस समय का दौर ही अलग था। हर किसी के मन मे भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या के लिये कुछ करने की ललक थी और यह उत्साह, उमंग व जोश पूरे देश में हर जगह देखने मिलता था। यूपी सीमा मे पहुंचते ही दो बार खुली जेल में ठूस दिये जाने और वहां से भागने पर संसाधन नही होने के बाद पैदल चलने में भी एक अलग उत्साह था। हमारे दल के हर साथी की भूख व प्यास गायब थी और देशभक्ति का नारा व गीतो से एक अलग समां बंधता था। ” जिस हिन्दू का खुन न खौले वह पानी है जो जन्म भूमि के काम न आवे, वह बेकार जवानी है”। “साधु सन्तो की हुंकार है सुन लो दिल्ली की सरकार , गांव गांव से जायेगे मंदिर वही बनायेगे “ऐसे गगनभेदी कई नारो से हमारा दल अलग समां बांधता था। जगह जगह गांव वालो का जोश देखकर कई किलोमीटर पैदल चलने पर भी हमारे मन में जोश, जुनून, ऊर्जा इतनी थी कि दिन व रात भूख प्यास व थकान का पता ही नहीं चलता था।
यह संस्मरण सांझा करते हुए वर्ष 1990 में अयोध्या के लिये कूच करने वाले कार सेवक राजनांदगांव जिला कार सेवा समिति के तत्कालीन महामंत्री व अभाविप के पूर्व प्रातांध्यक्ष विष्णु साव, तत्कालीन अभाविप के अध्यक्ष रवीन्द्र मुदिराज, कारसेवक फत्तेलाल साहू, तामेश्वर साहू, देवनारायण निर्वाणी बताते है कि उस समय मुलायम सिंह की उत्तरप्रदेश मे समाजवादी पार्टी की सरकार थी और वह एक वर्ग विशेष के प्रति उनका अनुराग सर्वविदित था। उस समय जब अविभाजित राजनांदगांव से कार सेवको को उत्तरप्रदेश के अयोध्या कार सेवा के लिये घरवालो ने सहमति देकर रवाना किया तो मोहल्ले सहित जिले में आम जनता के बीच जगह जगह यह चर्चा शुरू हो गयी थी कि अयोध्या जाने वाले कार सेवको की वापसी की संभावना कम है।बहुत से अयोध्या जाने की चाह रखने वाले कई कार्यकर्ताओ को परिवार वालो की नाराजगी के चलते सत्यनारायण धर्मशाला राजनांदगांव से वापस बेमन से घर लौटना पडा पर अयोध्या कूच करने की चाह मन मे बार बार उठती रही। जिससे ऐसे कई कार सेवको ने वर्ष 92 मे अयोध्या जाने का मन बनाया और गये भी।उस समय भाजपा की सरकार थी और कल्याणसिंह मुख्यमंत्री थे और उस समय विवादित ढांचा गिरा था।
श्री राम सेवा समिति से जुडे ऊक्त कार सेवक बताते है कि उस समय की कार सेवा का अदभूत पल आज भी बार बार याद आता है। नब्बे के दशक से आठ साल लगातार चले राम मंदिर निर्माण से जुड़े हर अभियान और आंदोलनों के हम सभी प्रत्यक्ष गवाह है। कार सेवा से पूर्व उदयाचल मे महाराज आर्चाय धर्मेन्द्र ने सभा लेकर शोभा यात्रा निकाली थी जिसमे तत्कालीन कलेक्टर प्रवेश शर्मा द्वारा स्वयं व टीम को बल प्रयोग करने से खादी वाले बाबा राधेश्याम शर्मा शहीद हुए थे। अयोध्या की कार सेवा मे शामिल हुए, कुछ ऐसे भी कार सेवक है जो कार सेवा के कई साल असमय काल कवलित हुए ।जिनमे रामकृष्ण निर्वाणी, रामबहादुर मुन्ना, अशोक चौहान है। कार सेवक समिति के महामन्त्री विष्णु साव ,तत्कालीन अभाविप के अध्यक्ष रवीन्द्र मुदिराज ने आगे बताया कि कारसेवा की हसरत लिए हम लोग अविभाजित राजनांदगांव से लगभग 150 लोग सारनाथ एक्सप्रेस से दुर्ग से अयोध्या कूच कर गए थे। कार सेवा समिति के निदेश पर टिकट हम सभी ने इलाहाबाद तक कटवायी थी। यूपी पहुंचने से पहले ही हमारी ट्रेन मध्यप्रदेश के कटनी स्टेशन पर रोक दी गई। इसके बाद हम बस से यूपी सीमा तक पहुंचे। तभी अचानक यूपी पुलिस ने नारायणी गांव में बस रूकवाकर हमारा नाम पता लिखकर गिरफ्तार कर वहां की एक स्कूल में अस्थाई खुली जेल में बंद कर दिया । सुबह से दोपहर हो गयी और भूखे प्यासे रहने से हम परेशान रहे। हम सबने शौच का बहाना बनाकर वहां स्कूल से भागे और गन्ने के खेतो से होते हुए पैदल भागे। इस दौरान हमारी टीम के कई साथी पीछे छुट गये थे। इसके बाद हमने आगे का सफर पैदल तय किया।एक दिन मे पच्चीस व पचास किलोमीटर चलते थे। उस समय रास्ते मे पडने वाले गांवो मे कार सेवको के लिये कही खिचडी तो कही रोटी सब्जी चूल्हे पर बनती थी।गांव वालो की सेवा व मनुहार देखते ही बनता था। रास्ते मे जंगल के रास्ते में ददुआ डाकू का एक गांव भी था जिसका खौफनाक कारनामे व आंतक से हर कोई परेशान था। हमारे साथ चल रहे टीम लीडर बिसराराम यादव ने सीटी बजाकर सभी को आगाह किया कि इस गांव मे ज्यादा देर नही रूकना है। हम जब गांव के नजदीक पहुंचे तो देखा कि महिलाये व युवा मुर्रा चना व गुड लेकर कार सेवको की सेवा करने खडे है।हमसे उन्होंने कार सेवा को लेकर बात की और हम उनसे सामान लेकर आगे बढ गये। इसी तरह जंगल मे भी पडने वाले गांवो मे कार सेवको के प्रति सेवा करते समय एक ही अलग ही स्नेह व भाव ग्रामीणों मे नजर आता था। हमारे साथ छोटे से बैग मे थाली ,टावल व एक जोडी कपडा ही था। तब बारह दिन के कडे सफर में थकान व भूख प्यास क्या होती थी। यह हमें पता ही नही चलता था। हम आगे रानीखेत गांव पहुंचे तो गुजरात के कार सेवको ने अपने पास का खाखरा, थेपला व अन्य नाश्ता उपलब्ध कराया। बाहर निकलते ही पुलिस की नजरों से बचते आगे बढते रहे। हम भूखे प्यासे थे। उस समय उत्तर प्रदेश के मथुरा ,वृदावन, प्रतापगढ आदि गांवो में हमने देखा कि जगह जगह हजारों कारसेवकों का जमावड़ा था। हम जिस गांव मे जाते थे।हर गांवो में श्रीराम के जयकारे व गीत गूंजते थे। मुलायमसिंह की सरकार ने केन्द्र से आईटीबीपी की फोर्स बुलवायी थी। हम सब लोग जब इलाहाबाद के समीप एक बडे पुल से आगे बढने की तैयारी में थे। तभी हमारे आगे की कार सेवको के टीम लीडर ने आकर हमे सर्तक किया कि पुल पर फोर्स व नागा साधुओ व अन्य साधु संतो के बीच आगे जाने को लेकर विवाद शुरू हो गया है। तभी हमने देखा कि नागा साधुओ से आईटीबीपी के साथ बहस व आगे जाने की जिद के बीच गोलीबारी शुरू हो गयी। आज भी वह दृश्य याद आते ही गोलियो की तडतडाट आज भी हम सबके कानो मे गुजंती है। इस गोलीबारी व झूमाझटकी में कई लोगो को जमीन पर व सरयू नदी पर गिरते देखने से वह खतरनाक खुनी मंजर आज भी याद आता है। हमे कार सेवा समिति के टीम लीडर द्वारा समिति के आदेश की जानकारी दी गयी और हम सब बस के बाद ट्रेन से वापस राजनांदगांव वापस लौटे। विष्णु साव व रवीन्द्र मुदिराज कहते है कि उस समय कार सेवको का जूनून व भगवान श्री राम की निस्वार्थ भक्ति का अलग अनोखा दृश्य भुलाया नही जा सकता। दोनो का कहना है कि आज भी रामकथा में पूरे देश की आत्मा बसी है। राम मंदिर निर्माण से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों में रथ यात्रा और शिलापूजन के बाद सम्पूर्ण भारत मे जय श्रीराम की गुंज सुनायी दी और लोगों मे भक्तिभाव दिखायी देने लगा।वर्ष 1990 मे कार सेवा के लिये अयोध्या कूच करने वाले यह कार सेवक यह भी बताते है कि आज अयोध्या धाम में 22 जनवरी को रामलला के विराजने की हमें बहुत खुशी हो रही है। हम सब अयोध्या के विवादित ढाँचे तक चाहकर नही पहुंच पाये, परन्तु इसका हमें सन्तोष है कि राम मंदिर निर्माण के संघर्ष में हमने भी कही न रामसेतु के निर्माण में गिलहरी के समान भागीदारी निभाई है और हम आगे आने वाली पीढी को यह कथा बता सकते है कि उस समय क्या हुआ था। जब हम वापस लौटे तो श्री राम कार सेवा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष नथमल अग्रवाल के साथ राजनांदगांव शहर की जनता का वह स्वागत में सैलाब उस समय हमें यह एहसास कराता था कि हर दिल व हर मन मे जब श्री राम भगवान की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर भावना जब घर घर गयी है तो श्रीराम मंदिर एक दिन जरुर बनेगा और हम उस पल के साक्षी रहेगे।
*1992 की कार सेवा मे गिरा ढांचा*
उन दिनों को याद करते हुए कार सेवक कोमल सिंह राजपूत का कहना है कि वह अपने साथियो राजेश चौबे ,चोवाराम सोनकर ,चेमन देशमुख,प्रबोध गुप्ता के साथ अयोध्या कार सेवा मे गये थे। कोमल सिंह राजपूत बताते हैं कि कारसेवा में शामिल होने के लिए सभी 4 दिसंबर 1992 को ट्रेन के सहारे अयोध्या के लिए निकले थे। दो दिन बाद 6 दिसंबर 1992 को सुबह करीब 11 बजे वे लोग अयोध्या के स्टेशन पहुंचे तो जानकारी मिली कि कार सेवा शुरू हो चुकी है और एक ढांचा गिरा दिया है। विवादित ढांचे के समीप पहुंचकर उन्होंने दूसरे ढांचे को गिराने के लिए कार सेवा शुरू की। उन्होंने करीबन छह घंटे तक कार सेवा की और उस चूने ईट के ढांचे को गिराया। उन्होंने बताया कि कारसेवकों को रोकने के लिए जो लोहे के बेरिकेट लगाए गए थे।उनकी मदद से ही ढांचे को गिराया गया। सभी ने कारसेवकपुरम में भोजन व विश्राम करने के दौरान लगभग रात 9 बजे फिर हम सबने वहां अन्य रातों-रात कारसेवकों के साथ मिलकर चारो तरफ चार फीट की दीवार बनाकर जय प्रभु श्रीराम की स्थापना कर गुलाबी रंग के कपड़े से पंडाल बनाया।अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 का दिन ऐतिहासिक था। ढांचे के चारो तरफ जनसैलाब उमड़ा था। अयोध्या में दिनभर परिसर में राम नाम के जयकारे गूंजते रहे। हम सब दो दिन रुकने के बाद वापस ट्रेन से लौटे। यहां राजनांदगांव आने पर हमारा तिलक लगाकर स्वागत किया गया।हमारा सौभाग्य है कि कार सेवा करने के बाद 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न होते देखने का अवसर मिल रहा है।