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हिमालय क्षेत्र में अंधाधुंध निर्माण से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को लेकर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया

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नई दिल्ली । हिमालय क्षेत्र में भारत के 13 राज्यों में विकास के नाम पर हो रहे अंधाधुंध निर्माण से पर्यावरण पर पड़ने वाले असर के अध्ययन और एहतियाती कदम उठाने के लिए विशेषज्ञों की कमेटी की रूपरेखा को लेकर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। मसूरी, मनाली, जोशीमठ और मैक्लोडगंज जैसे ऊंचाई और भीड़भाड़ वाले पहाड़ी शहर पिछली गाइडलाइन का पालन सभी राज्य किस निष्ठा के साथ कर रहे हैं? इसकी जानकारी कोर्ट को ये समिति समयबद्ध और चरणबद्ध ढंग से देगी।
पूर्व आईपीएस अशोक राघव की इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वो इस संबंध में एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन करना चाहता है।
केंद्रीय वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के हलफनामे के मुताबिक जीबी पंत इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन इन्वायरनमेंट के निदेशक की अध्यक्षता में 13 विशेषज्ञों की कमेटी बनाई जा सकती है। इन 13 सदस्यों में इन संस्थानों के निदेशक या उनके नामजद को कमेटी में रखा जाए।
इनके अलावा राज्य डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के अफसर, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, सर्वे ऑफ इंडिया, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय भूजल आयोग के सदस्य सचिव उच्चाधिकार प्राप्त समिति के सदस्य हों। ये समिति समयबद्ध आधार पर अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट देती रहेगी।
हलफनामे में कहा गया है कि सभी 13 राज्य अपने यहां पहले से जारी गाइडलाइन के अनुपालन पर उठाए जा रहे कदमों और एक्शन मैप तैयार करने के लिए मुख्य सचिव की अगुआई में कमेटी बनाई जाए। समयबद्ध तरीके से ये कमेटी विविध ढंग से अध्ययन कर उनसे मिले नतीजों पर आगे बढ़े।
कोर्ट ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र में स्थित सभी 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों, हिल स्टेशनों, उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों, बड़े टूरिस्ट क्षेत्रों और पर्यटन स्थलों की वहन क्षमता का पता लगाने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल बनाने का संकेत दिया था।
याचिकाकर्ता व केंद्र को सुनवाई की अगली तारीख 28 सितंबर को सुझावों के साथ वापस आने का निर्देश दिया गया कि पैनल में कौन-कौन विशेषज्ञ हो सकते हैं और संदर्भ की शर्तें क्या हो सकती हैं।