हिमाचल और उत्तराखंड में लैंडस्लाइड और बादल फटने से बिगड़े हालात, पहाड़ों से नीचे खिसक सकते हैं शिमला, कुल्लू और सोलन जैसे शहर!
नई दिल्ली । हिमाचल और उत्तराखंड में बीते 3 दिनों से बारिश जारी है। 24 घंटे में दोनों राज्यों में लैंडस्लाइड और बादल फटने से जुड़ी घटनाओं में 80 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। मौसम विभाग ने अगले 24 घंटों में यहां तेज बारिश का अलर्ट जारी किया है। बीते कुछ दिनों से दोनों राज्यों में हो रही बारिश ने एक बहुत बड़े खतरे की ओर बड़ा कदम बढ़ा दिया है। यह खतरा पहाड़ों पर बसे बड़े शहरों के नीचे की मिट्टी में आई नमी की वजह से बना है। मौसम विभाग के मुताबिक, लगातार हो रही बारिश से यहां के पहाड़ों के भीतर की मिट्टी में इतनी नमी आ गई है। इससे लैंडस्लाइड, मड स्लाइड समेत बड़े-बड़े पेड़ों वाले जंगलों के नीचे की मिट्टी खिसक रही है।
उत्तराखंड के जोशीमठ के पास लैंडस्लाइड में एक घर ढह गया। इसमें दो व्यक्ति की मौत हो गई। यह घटना मंगलवार देर शाम पीपलकोटी और जोशीमठ के बीच बद्रीनाथ राजमार्ग पर हेलंग गांव में हुई। चमोली पुलिस के अनुसार, चमोली जिले के पीपलकोटी, गडोरा, नवोदय विद्यालय पीपलकोटी, गुलाबकोटी, पागलनाला और विष्णुप्रयाग इलाके में हाईवे को नुकसान पहुंचा है। राज्य में पिछले तीन दिनों में भारी बारिश, लैंडस्लाइड व बादल फटने से जुड़ी घटनाओं में 55 की मौत हो चुकी है। 950 से ज्यादा सडक़ें जगह-जगह बंद पड़ी हैं
वैज्ञानिकों को अब इस बात का डर सता रहा है कि चार जुलाई से हो रही तेज बारिश और नमी का असर अगले कुछ महीनो में पहाड़ों पर बसे शहरों के खिसकने के तौर पर भी सामने आ सकता है। इन शहरों में हिमाचल प्रदेश की राजधानी समेत कई बड़े जिले भी शामिल हैं। फिलहाल हिमाचल प्रदेश का मौसम विभाग केंद्रीय जांच एजेंसियों से पहाड़ों की इन नमी का आकलन करवाने की बात कही है, ताकि पता चल सके कि हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों के भीतर नमी कितनी है और कितने पहाड़ अब सुरक्षित बचे हैं।
मौसम विभाग के निदेशक सुरेंद्र पाल कहते हैं कि बीते कुछ दिनों में जिस तरीके से हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर से तबाही मचनी शुरू हुई है उससे अब यह कहा जा सकता है की हालात फिलहाल खतरनाक हो गए हैं। वह कहते हैं जिस तरीके से पहाड़ों पर बने हुए घर खिसक रहे हैं उससे साबित होता है कि पहाड़ों की मिट्टी में नमी का स्तर बहुत ज्यादा हो गया है। नतीजतन वह अपने ऊपर के भार को संभाल नहीं पा रहे हैं और नीचे की ओर खिसक रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के मौसम विभाग का मानना है कि यहां के ज्यादातर पहाड़ मिट्टी के हैं और बड़े-बड़े शहर उन्हीं पहाड़ों के ऊपर बसे हुए हैं। इसलिए न सिर्फ खतरा बढ़ा है बल्कि उसको रोकने के उपाय भी बेहद जरूरी हो गए हैं। वह कहते हैं पहाड़ों पर बसे जंगलो के पेड़ अपना अस्तित्व छोड़ कर नीचे गिर रहे हैं। उससे यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि ये जंगल और पेड़ भी बारिश के पानी को संचयित नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए पहाड़ों पर बसे शहरों और यहां की आबादी के लिए बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है।
लगातार हो रही बारिश से मौसम विभाग को सबसे ज्यादा खतरा हिमाचल प्रदेश के सबसे ज्यादा आबादी वाले शहरों को लेकर बना हुआ है। निदेशक सुरेंद्र पाल कहते हैं कि जिन शहरों में लगातार हो रही बारिश से लैंडस्लाइडिंग और मड स्लाइडिंग का खतरा बना हुआ है उसमें शिमला, सोलन, मंडी, कुल्लू, बिलासपुर और सिरमौर समेत कई प्रमुख जिले और उनके शहर शामिल हैं। दरअसल, पहाड़ों पर बसे इन शहरों की आबादी न सिर्फ लगातार बढ़ती रही, बल्कि यहां पर बेतरतीब तरीके से निर्माण का काम भी किया जाता रहा। इसके अलावा मौसम विभाग को चिंता इस बात की भी सबसे ज्यादा है कि हिमाचल प्रदेश के ज्यादातर बांध और बैराज फुल हो चुके हैं। इस वजह से पहाड़ों का जलस्तर भी ऊपर बढ़ गया है। जलस्तर के बढऩे से पहाड़ों की मिट्टी में न सिर्फ नमी बढ़ रही होगी बल्कि वह कमजोर भी हो सकते हैं।
मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, पहले चरण में हुई 7 से 11 जुलाई की बारिश में हिमाचल प्रदेश के ऊपरी हिस्सों में सबसे ज्यादा बारिश हुई और बाढ़ से नुकसान हुआ। 11 से 14 जुलाई के बीच बारिश ने व्यास और सतलुज नदी के इलाकों में तबाही मचानी शुरू की। मौसम विभाग के निदेशक सुरेंद्र पाल कहते हैं कि अब हुई बारिश से ज्यादा चिंता बढऩी शुरू हो गई है। इस बार होने वाली बारिश न सिर्फ कम ऊंचाई वाले इलाकों में अपनी तेज गति से हो रही है, बल्कि पश्चिमी विक्षोभ और मानसून उनके आपस में मिलने की वजह से हालात हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा कठिन हो गए हैं। मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल हिमाचल प्रदेश में अगले पांच दिनों तक मौसम कुछ सामान्य रहने वाला है। हालांकि, 19 अगस्त से प्रदेश में एक बार फिर से मौसम के बिगडऩे का अनुमान लगाया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में मौसम की वजह से होने वाले नुकसान और लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने के लिए काम कर रही एजेंसियों का कहना है कि मौसम विभाग के आकलन के मुताबिक ही उनकी पूरी तैयारियां चल रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय भी लगातार हिमाचल प्रदेश में बदहाल हुए मौसम और उससे होने वाले नुकसान से बचाव के बाबत लगातार संपर्क में बना हुआ है।
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. अरूप चक्रवर्ती कहते हैं कि बीते एक दशक में तैयार की गई उनकी रिपोर्ट बताती है कि पहाड़ के ज्यादातर आबादी वाले हिस्से के इलाके एक खोखले टीले पर बसे हुए हैं। वह कहते हैं कि जिस तरीके की मूसलाधार बारिश पहाड़ों पर जमकर हो रही है और तेजी से पिघलते ग्लेशियर से निकलता पानी तेजी से नदियों के माध्यम से उन पहाड़ों के भीतर जाकर उनकी जड़ों को और खोखला कर रहा है। चक्रवर्ती अंदेशा जताते हैं कि जिस तरीके से बीते दो दिनों में बारिश हुई है वह पहाड़ी इलाकों के लिए सबसे खतरनाक साबित हो सकती है। चक्रवर्ती कहते हैं कि सबसे बड़ा खतरा पहाड़ों के खिसकने का है। उनका उनका कहना है कि इस वक्त सबसे ज्यादा हिमाचल प्रदेश में बारिश कहर बरपा रही है। खोखले हो चुके पहाड़ों पर बसी आबादी और खतरनाक पहाड़ों पर बने मकानों और उनके ठिकानों के खिसकने का खतरा बना हुआ है। वह कहते हैं कि जिस तरीके से बारिश हुई है अगर इसी तरीके की बारिश इस मानसून में एक दो बार और हो जाती है तो बेहद चिंता की बात होगी।
पहाड़ों पर बसी आबादी को लेकर एक बहुत बड़ा खतरा सामने आ रहा है। भूवैज्ञानिकों का कहना है पहाड़ों का गुरुत्वाकर्षण केंद्र अपनी जगह से खिसकने लगा है। लगातार हो रहे बेतरतीब तरीके के निर्माण कार्य से आबादी वाले पहाड़ खोखले भी होने लगे हैं। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वैज्ञानिक अरूप चक्रवर्ती कहते हैं कि आने वाले दिनों में पहाड़ों के खिसकने की घटनाएं न सिर्फ हिमाचल और उत्तराखंड में बढ़ेंगी, बल्कि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में बसे पहाड़ी इलाकों और नेपाल, भूटान, तिब्बत जैसे देशों में भी ऐसी घटनाओं के बढऩे की संभावना ज्यादा है। इसमें बारिश की वजह से और बड़ी घटनाओं के होने की आशंका बनी हुई है। वह कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में पहाड़ों के खिसकने का सिलसिला लगातार जारी है। पहाड़ों पर लगातार हो रहे अतिक्रमण से पहाड़ों का पूरा गुरुत्वाकर्षण केंद्र अव्यवस्थित हो गया है। पहाड़ों की टो कटिंग और बेतरतीब तरीके से हो रहे निर्माण की वजह से ऐसे हालात बने हैं। उनका कहना है कोई भी पहाड़ तभी तक टिका रह सकता है जब उसका गुरुत्वाकर्षण केंद्र स्थिर हो। पहाड़ों की तोडफ़ोड़ और पहाड़ों पर बेवजह के बोझ से उसका स्थिर रखने वाला गुरुत्वाकर्षण केंद्र अपनी जगह छोड़ देता है। ऐसे में जब तेज बारिश होती है और नदियों का बहाव अपने वेग के साथ पहाड़ी इलाकों में बहता है, तो पहाड़ों की खोखली हो रही नीव को गिराने की क्षमता भी रखते हैं। यही परिस्थितियां सबसे खतरनाक होती हैं।