*समान नागरिक संहिता दलितो आदिवासियो पिछड़ो व अल्पसंख्यको के हित मे कदापि उचित नही – मेश्राम*
*एससी/एसटी एक्ट और आरक्षण को खत्म करने की साजिश की संभावना, पिछड़ो अल्पसंख्यको की धार्मिक सामाजिक कार्य प्रणालियो को निष्प्रभावी बनाने की आशंका*
*छत्तीसगढ़ मे आदिवासियो के रीति-रिवाज,संस्कृति व संस्कार सर्वथा भिन्न,दलितो-अल्पसंख्यको व पिछड़ो के सामाजिक धार्मिक नियम कायदे अलग-अलग*
*सरकार संविधान के कुछ विशेष अनुच्छेदो का पालन करा ले, देश मे सामाजिक समरसता व समानता स्वमेव आ जायेगी*
*भारतीय संविधान ने आजादी के 76 वर्षो बाद भी देश को एकसूत्र मे पिरोकर रखा – भाजपानीत केन्द्र सरकार अपनी स्वार्थपरक नीतियो का त्याग करे*
भिलाई /अनुसूचित जाति जनजाति संगठनो का अखिल भारतीय परिसंघ छ.ग.राज्य के प्रदेश अध्यक्ष अनिल मेश्राम व अन्य पदाधिकारियो द्वारा भाजपानीत केन्द्र सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 44 के अनुसार समान नागरिक संहिता को भारत मे लागू कराये जाने के प्रस्ताव व प्रयास को छत्तीसगढ़ राज्य सहित देश के अन्य राज्यो मे निवासरत दलितो आदिवासियो पिछड़ो व अल्पसंख्यको के हित मे सर्वथा अनुचित बताते हुए इसे सामाजिक धार्मिक विकास की दिशा मे अहितकारी व निरर्थक करार दिया है। श्री मेश्राम ने कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 की चिन्ता छोड़कर अन्य महत्वपूर्ण अनुच्छेदो का पालन कराने की दिशा मे गंभीरतापूर्वक प्रयास किये जाने चाहिए। उन्होने कहा कि केंद्र सरकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15,17,25,26,29,38,46,340,341,342 व 350 का यदि गंभीरतापूर्वक क्रियान्वयन व पालन करा लेवे तो अविश्वसनीय गति से भारत मे सामाजिक समरसता व समानता स्थापित हो सकेगी बशर्ते संविधान का पालन कराने वालो की नीयत मे पारदर्शिता, निष्पक्षता व निस्वार्थता के भाव हो। श्री मेश्राम ने यह भी कहा कि डा.बाबासाहेब आम्बेडकर द्वारा रचित संविधान का ही अद्भुत परिणाम है कि भारत की स्वतंत्रता के 76 वर्षो के पश्चात भी अनेक धर्मावलंबियो के होने के बाद भी 140 करोड़ की आबादी वाला विशाल देश एकसूत्र व एकमाला मे एकजुटता के साथ पिरोया हुआ निर्भीकता के साथ अविचलित अडिग व अभेद्य है। आज से 9 वर्ष पूर्व भी भारत इतना ही सशक्त व मजबूत था जिसकी आधारशिला पर वर्तमान भाजपानीत केन्द्र सरकार का शीर्ष नेतृत्व सबसे अच्छा काम करने की दुहाई देते हुए स्वयं को अब तक का सर्वश्रेष्ठ शासक घोषित करने मे लीन है। डबल इंजन सरकार का नाम देकर सामूहिकता व संवैधानिक एकजुटता का उपहास उड़ाने मे शासकगण तल्लीन है। भारतीय संविधान के निर्माता डा.बाबासाहेब आम्बेडकर द्वारा नवम्बर 1949 मे संविधान सभा मे दिया गया यह संबोधन कि “भारत के लोकतंत्र को एक अन्य बात से बहुत बड़ा खतरा है और वह है नायक पूजा। इस देश की राजनीति मे जितनी भक्ति और नायक पूजा है उतनी अन्य किसी देश मे नही है। राजनीति मे नायक पूजा पतन की ओर धकेलती है और अंत मे तानाशाही की ओर ले जायेगी यह तय है।” आज उनका यह कथन देश मे चरितार्थ होता नजर आ रहा है। भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश मे तानाशाही का वातावरण निर्मित होता नजर आ रहा है जो देश के भविष्य के लिए अत्यंत घातक व आम नागरिक के लिए अहितकर साबित होगा। श्री मेश्राम ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार द्वारा वर्तमान मे कामन सिविल कोड का राग अलापना देश मे आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनावो के मद्देनजर देश मे 28 करोड़ युवाओ की बेरोजगारी की ज्वलंत समस्या, तेजी से बढ़ती महंगाई, चरमराती अर्थ व्यवस्था, निजीकरण से उत्पन्न पूंजीवाद, गंभीरतम रेल हादसे, असम मेघालय मिजोरम व मणिपुर मे उत्पन्न ज्वलंत समस्याओ से देश की जनता का ध्यान भटकाने का एकमात्र उद्देश्य है। यह उपक्रम देश मे निवासरत एक वर्ग विशेष के प्रति भेदभाव व द्वेषपूर्ण वातावरण निर्मित कर एक वर्ग विशेष को साधकर राजनीतिक स्वार्थपूर्ति का नाटकीय प्रयास मात्र है। जिसे देश की आम जनता, प्रबुद्ध वर्ग व सामाजिक धार्मिक चिन्तको को देख व सोच समझकर कदम उठाना चाहिए। परिसंघ के एचके मेश्राम,सीपी जांगड़े,एल एन कोसले,डी एस ध्रुव,गुरूनाथ जांगड़े,मुकेश गोंडाने,एडवोकेट मनोज मून,प्रदीप सुखदेवे,मोहन बंजारे,सुरेन्द्र खूंटे,नरेन्द्र खोब्रागड़े,मोहन राय,अशोक सोनवानी,सुनिल गणवीर,अरूण रामटेके,पी आर झाड़े,भीषम सूर्यवंशी,भानसिंह पैकरा,सुनिल चौहान,डा अरविन्द चौधरी,एडवोकेट अजय मेश्राम,बीआर कठाने,शशांक ढाबरे,सीताराम ठाकुर,दीपक बंसोड़,रामचंद्र रामटेके,आदित्य टंडन,स्वर्णिश नारंजे सहित अनेक सदस्यो ने केन्द्र सरकार से समान नागरिक संहिता को लागू करने के स्थान पर भारत के समस्त नागरिको को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराने हेतु संवैधानिक प्रयास किये जाने की मांग की गई है।