भुवनेश्वर । ट्रेन हादसे में घायल ट्रेन के ड्रायवर से उनके परिवार को अब तक मिलने नहीं दिया गया। पिछले तीन दशकों में देश की सबसे भीषण रेल हादसे में ट्रेन चालक का परिवार अभी भी उससे मिलने की आस लगाए बैठा है। गुनानिधि मोहंती के परिवार को दुर्घटना के बाद से उसे देखने या मिलने की इजाजत नहीं दी गई। कटक के चहल-पहल भरे शहर से 10 किलोमीटर दूर नाहरपाड़ा गांव की छोटी-छोटी गलियों में दो हफ्ते बीत जाने के बाद भी वैसा ही माहौल है। खेल का मैदान हो या फिर चाय की दुकान लोग यही सवाल उठाते रहते हैं कि क्या गुनानिधि मोहंती ट्रेन को तेज रफ्तार से चला रहे थे? मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 80 वर्षीय बिष्णु चरण मोहंती कहते हैं कि, गांव में हर कोई सोचता है कि दुर्घटना के लिए मेरा बेटा जिम्मेदार है। लेकिन वह पिछले 27 सालों से ट्रेन चला रहे हैं और उन्होंने कभी गलती नहीं की थी।
उसके पिता बताते हैं कि मुझे कैसे पता चलेगा कि उस शाम क्या हुआ था? मैंने अपने बेटे से बात भी नहीं की है। मैं केवल उनके घर आने का इंतजार कर रहा हूं। 2 जून को, गुनानिधि मोहंती खड़गपुर से भुवनेश्वर तक कोरोमंडल एक्सप्रेस के ड्राइवर थे। उस वक्त बालासोर के बहानगा बाजार में ट्रेन एक लूप लाइन में बदल गई, जहां पहले से खड़ी मालगाड़ी से वह टकरा गई। रेल हादसे वाले दिन शाम 7 बजे से पहले, गुनानिधि तीन दशकों में भारत की सबसे खराब रेल दुर्घटना का हिस्सा बन गए थे। दुर्घटना में 291 लोग मारे गए थे, जबकि 1,100 से अधिक घायल हुए थे। घायलों में से एक गुनानिधि खुद हैं, जिन्हें भुवनेश्वर के एएमआरआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी तीन पसलियां टूट गईं और सिर पर गंभीर चोट थी। तब से पूर्व फौजी बिष्णु चरण अपने बेटे के लौटने का इंतजार कर रहे हैं।