भिलाई।जन संस्कृति मंच, दुर्ग-भिलाई के तत्वावधान में देश के चर्चित कथाकार उपन्यासकार कैलाश बनवासी की कृति ‘ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान’ पर ‘हिंदी डिजिटल कक्ष’, कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिलाई में सम्पन्न हुई।
कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत कथाकार कैलाश बनवासी द्वारा अपनी पसंदीदा कहानी ‘लुप्त होता इन्द्रधनुष’ के पाठ से हुई। उन्होंने अपनी कृति पर वक्तव्य देते हुए कहा कि मेरी कहानियाँ छत्तीसगढ़ के जनजीवन पर देश काल की स्थितियाँ कैसा असर डाल रही है, उनके राग-रंग, दुःख-सुख आदि को प्रकट कर सकने की कोशिशें हैं। मौजूदा संचार क्रांति, तकनीक, कार्पोरेट पूंजी और राजनीति ने मनुष्य की संवेदना पर गहरा असर डाला है। अब लोग साहित्य, कला या संस्कृति से तमाम कारणों से दूर हो गये हैं, कैरियरवादी एप्रोच हावी है और उपभोक्तावाद की गहरी चपेट में है। साहित्य मनुष्य की मनुष्यता, सहयोग, पारस्परिकता बचाये रखने का काम करता है और कल के बेहतरी का स्वप्न पाठकों में जगाता है। मेरी कहानियों का यही केन्द्रीय लक्ष्य है।
वरिष्ठ आलोचक प्रो. डॉ. सियाराम शर्मा ने कहा कि कैलाश बनवासी की कहानियाँ स्थितियों की कहानियाँ हैं। पूरी कहानियों के परिदृश्य में एक समयबिद्ध कथाकार के रूप में उनकी विशिष्ट पहचान बनती है। भूमंडलीकरण के दौर में उन्होंने अपनी श्रेष्ठ कहानियाँ दीं। ‘ठग्स ऑफ़ हिन्दोस्तान’ की कहानियाँ सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने की प्रक्रिया और साम्प्रदायिक माहौल की गहराई से पूरी संवेदनशीलता के साथ पड़ताल करती हैं।
कृति-चर्चा की अध्यक्षता करते हुए आलोचक जयप्रकाश ने महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ दीं- “कहानी साहित्यिक विधाओं में सबसे कठिन विधा है। कहानी-कला समय को फलांगने की कला है, सार्वभौमिकता संवेदना की ऊँचाई तक पहुँचाने की कला है। ‘उमस’ और ‘लुप्त होता इंद्रधनुष’ इस संग्रह की श्रेष्ठ कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ अपने समय, स्थान से बंधी नहीं हैं और देश-काल का अतिक्रमण करने की क्षमता रखने वाली कहानियाँ हैं। इनमें विषयों का दबाव नहीं है। कैलाश बनवासी की कहानियों को पढ़ते हुए रोमांच पैदा होता है।”
कथाकार ऋषि गजपाल ने संबोधित करते हुए कहा कि कैलाश बनवासी की कहानियाँ गाँव और शहर के आवागमन की कहानियाँ हैं। उन्होंने तीर्थयात्रा, उमस और शोक कहानी पर प्रभावशाली टिप्पणियाँ दीं।
युवा कवि डॉ. अंजन कुमार ने कृति पर बात रखते हुए कहा- “कैलाश बनवासी गाँवों की दुर्दशा को केन्द्र में रखकर कहानी लिखने वाले विरले कथाकार है। इनकी कहानियों का फलक काफी बड़ा है। स्थितियों, स्मृतियों और किरदारों के माध्यम से इनका समय इसमें प्रवेश करता है और बदलते हुए यथार्थ को बड़ी सहजता से उजागर करता है। यह कहानियाँ हमारे जीवन अनुभव की करीब की कहानियाँ है। यह कहानियाँ हमारे समय की छीजती जा रही संवेदना, मूल्यों के विघटन और बदलते समय और समाज की बड़ी बारीकी से पड़ताल करती हैं।”
कार्यक्रम का संचालन सुबोध देवांगन तथा आभार प्रदर्शन जन संस्कृति मंच दुर्ग-भिलाई के सचिव सुरेश वाहने ने किया।
इस आयोजन में साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों और पाठकों की उपस्थिति रहीं जिनमें प्रमुख रूप से रवि श्रीवास्तव, विजय वर्तमान, वासुकि प्रसाद ‘उन्मत्त’, मणिमय मुखर्जी, शरद कोकास, राजकुमार सोनी, समीर दीवान, वी. एन. प्रसाद राव, सुमन साहू, शुचि ‘भवि’, ओमकुमारी देवांगन, मेनुका श्रीवास्तव, राजेन्द्र सोनबोइर, संग्राम सिंह निराला, डॉ. नौशाद सिद्दीकी, दिनेश कुमार, राकेश यादव, नमन अवसरिया, अशोक अवसरिया आदि शामिल हैं।