Home राजनीति मप्र-छग में विभाग तो…राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार अटका…

मप्र-छग में विभाग तो…राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार अटका…

9
0

नई दिल्ली/भोपाल/ रायपुर/जयपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और उनकी गारंटी पर भाजपा ने मप्र, छग और राजस्थान में जीतकर लोकसभा चुनाव के लिए अच्छी शुरूआत कर दी है। अब तीनों राज्यों का पहला टारगेट 100 दिन में मोदी की गारंटी को पूरा करना है। लेकिन विडंबना यह है कि भाजपा ने जहां छग और मप्र में मंत्रिमंडल का विस्तार कर दिया है, लेकिन विभागों का बंटवारा नहीं हो पाया है। वहीं राजस्थान में तो अभी तक मंत्रिमंडल का विस्तार भी नहीं हुआ है। ऐसे में 100 दिन में मोदी की गारंटी कैसे पूरी होगी?
गौरतलब है की छत्तीसगढ़ में मंत्रियों के शपथ ग्रहण को 7 दिन बीत चुके हैं, वहीं मप्र में दो दिन। लेकिन विभागों का बंटवारा अभी तक नहीं हुआ है। हालांकि छग के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव कैबिनेट में किसे क्या जिम्मेदारी मिलेगी, इसका अंतिम फैसला दिल्ली में होना है। गृहमंत्री अमित शाह इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं। उधर, 26 दिन बाद भी राजस्भान में भजन लाल का मंत्रिमंडल विस्तार नहीं हो पाया है। भजनलाल सरकार का एक-दो दिन में मंत्रिमंडल विस्तार होने की उम्मीद जताई जा रही है। भाजपा के सूत्रों की मानें तो जयपुर से बाहर के विधायकों को फोन जाना शुरू हो गए हैं। राजभवन में भी शपथ ग्रहण को लेकर तैयारियां हो रही हैं। माना जा रहा है कि मप्र और छत्तीसगढ़ की तरह राजस्थान के मंत्रिमंडल में भी नए लोगों को ज्यादा मौका दिया जाएगा। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी ने भी हाल ही में मीडिया से कहा कि जल्द ही एक छोटा मंत्रिमंडल बनेगा, इसके बाद मंत्रिमंडल का विस्तार भी होगा, इसमें सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। ऐसे में माना जा रहा है कि अगले एक या दो दिन में मंत्रिमंडल का गठन होगा। भजनलाल मंत्रिमंडल में 20 मंत्री बन सकते हैं। वहीं लोकसभा चुनावों के बाद एक बार फिर मंत्रिमंडल का विस्तार देखने को मिल सकता है।
तीनों राज्यों में मिली जीत के बाद भाजपा आलाकमान ने मुख्यमंत्रियों और उप मुख्यमंत्रियों की घोषणा कर शपथ दिलवा दिया है। शपथ ग्रहण के बाद से ही तीनों राज्यों के मुख्यमंत्री अकेले काम कर रहे हैं। ऐसे में राज्यों के भाजपा संगठन में ही यह चर्चा जोरों पर है की सरकारें मोदी की गारंटी को समय पर कैसे लागू कर सकेंगी। भाजपा ने प्रचार अभियान के दौरान वादा किया था कि 100 दिन में वादे पूरे करेंगे। लेकिन मंत्रिमंडल बनाने और विभाग बंटवारे में ही 26 दिन निकल गए हैं। मार्च में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग सकती है। ऐसे में अब सरकारों के पास महज 75 से 77 दिन ही काम के लिए बचे हैं।
इधर, राज्स्थान में मंत्रिमंडल गठन के इंतजार का नया रिकॉर्ड बन गया है। 26 दिन हो गए हैं, लेकिन आज भी मंत्रिमंडल की स्थिति स्पष्ट नहीं है। सभी विभागों की जिम्मेदारी सीएम के पास हैं। दो डिप्टी सीएम भी शपथ लेकर विभागहीन हैं। पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि जनता में अब निराशा व्याप्त होने लगी है, क्योंकि राजस्थान की जनता ने 3 दिसंबर को भाजपा को स्पष्ट जनादेश दिया पर 25 दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक मंत्रिमंडल का गठन नहीं हुआ है। इससे शासन संचालन में ठहराव की स्थिति आ गई है। हर विभाग भी असमंजस की स्थिति में है। जनता देख रही है कि अपनी समस्याओं के समाधान के लिए किन मंत्रियों के पास जाएं। जल्द से जल्द मंत्रिमंडल का गठन होना चाहिए, जिससे सरकार का कामकाज सुचारू रूप से चल सके।
जानकारी के अनुसार, राजभवन में शपथ ग्रहण की तैयारी पूरी हो चुकी है। जैसे ही सूचना आएगी वैसे ही मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है। हालांकि राज्यपाल का 28 दिसंबर को जोधपुर जाने का कार्यक्रम प्रस्तावित है। 27 को कार्यक्रम नहीं है यह पहले ही साफ किया जा चुका है। सूत्र बताते हैं कि 20 से 22 मंत्री बन सकते हैं, इसमें आधे से ज्यादा ओबीसी चेहरे दिख सकते हैं।
राजस्थान में भी छत्तीसगढ़ और मप्र की तरह नए चेहरों को मौका मिल सकता है। मंत्रिमंडल में उन विधायकों को मौका दिया जा सकता है, जो अभी तक कभी मंत्री नहीं बने हैं। हालांकि कुछ वरिष्ठ विधायकों को भी मंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन संख्या ज्यादा नहीं होगी। लोकसभा चुनावों से पहले जातीय और क्षेत्रीय संतुलन बनाकर मंत्रिमंडल में विधायकों को शामिल किया जाएगा, जिससे पार्टी लोकसभा चुनावों में इसे भुना सके।
राजस्थान में मुख्यमंत्री सहित अधिकतम 30 मंत्री बन सकते हैं। भजनलाल शर्मा सीएम, दीया कुमारी और डॉ. प्रेमचंद बैरवा उपमुख्यमंत्री बन चुके हैं। एक सीएम और दो डिप्टी सीएम बनने के बाद अब 30 में से 3 जगह भर चुकी हैं। कोटे के हिसाब से अब 27 मंत्री बन सकते हैं। पहले चरण में करीब 20 मंत्री बनाए जा सकते हैं, जिनमें 10 कैबिनेट और 10 राज्य मंत्री हो सकते हैं। पांच से सात जगह खाली रखी जा सकती हैं। बची हुई जगहों को लोकसभा चुनाव के बाद भरे जाने का विकल्प रखा जा सकता है।