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लोकसभा-विधानसभा के लिए महिला आरक्षण बिल पास, क्या राज्यसभा और विधान परिषद में बदल जाएगा सीटों का फॉर्मूला?

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महिला आरक्षण विधेयक दो तिहाई बहुमत के साथ बुधवार को लोकसभा से पारित हो गया है और अब गुरुवार को राज्यसभा में पेश किया जाएगा. संसद के उच्च सदन से भी महिला आरक्षण बिल आसानी से पास हो जाएगा, लेकिन लोकसभा और विधानसभा में 33 फीसदी आरक्षण आधी आबादी को कब से मिलेगा.

इसका सीधा सा जवाब यह है कि जनगणना और परिसीमन के बाद महिला आरक्षण कानून लागू हो सकेगा, लेकिन इसके बाद भी लोगों के मन में कई सवाल खड़े हो रहे हैं?

परिसीमन से लोकसभा और विधानसभा सीटों में इजाफा होने साथ-साथ क्या संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा और राज्यों में विधान परिषद की सीटों में भी बढ़ोत्तरी होगी? इन्हीं सारे सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश संविधान विशेषज्ञों और कानूनविदों से की है.

भारतीय संविधान के विशेषज्ञों और कानूनविदों की माने तो सरकार ने महिला आरक्षण कानून को लागू करने की गति को पिछले संशोधनों को ध्यान में रखकर मौजूदा विधेयक में निर्धारित अवधि प्रदान की है. मौजूदा स्थिति में लोकसभा-विधानसभा और राष्ट्रपति के चुनाव में 1971 की जनगणना को आधार बनाकर सीटों और मतदाताओं की संख्या का आकलन किया जाता है. ऐसा नहीं है कि उस अंतराल में सीटों को बढ़ाने का मुद्दा नहीं उठा, लेकिन 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने संविधान में 84वां संशोधन करके साल 2026 से पहले के चुनावों में सीटों की बढ़ोत्तरी पर रोक लगा दी गई थी.

2026 के बाद ही परिसीमन होगा

संविधान के अनुच्छेद 82 के अंतर्गत 2001 की जनगणना से पहले के आंकड़ों के आधार पर ही लोकसभा-विधानसभा की सीटें बढ़ाने की व्यवस्था की गई. यानी परिसीमन मौजूदा व्यवस्था के हिसाब से 2026 से पहले नहीं कराया जा सकता और जब तक ये नहीं कराया जाता, तब तक सीटों की लोकसभा और विधानसभा सीटों की भी बढ़ोत्तरी नहीं होगी. पहली बात यह है कि 2026 के बाद ही परिसीमन होगा तब कहीं जाकर सीटों का इजाफा होगा, लेकिन क्या लोकसभा और विधानसभा की तरह राज्यसभा और विधान परिषद की सीटें भी बढ़ जाएंगी?

संसद से पारित हो जाएगा महिला विधेयक

सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक राय के मुताबिक, महिला विधेयक संसद से पारित हो जाएगा. इसके बाद जनगणना में कम से कम दो साल लगेंगे. इसके बाद साल 2026 में परिसीमन कराकर सीटों को बढ़ाया जाएगा. लोकसभा सीटें बढ़ेंगी और निर्धारित फॉर्मूले के आधार पर राज्यसभा सीटों में इजाफा होगा. जबकि जिन राज्यों में विधान परिषद् है, वहां विधानसभा सीटों में बढ़ने पर परिषद् की सीटें भी बढ़ेंगी. इसकी वजह यह है कि विधान परिषद का आकार राज्य की विधानसभा में स्थित सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई से अधिक नहीं और किसी भी कारण से 40 से कम नहीं रखा जा सकता. यही वजह है कि जिन राज्यों में विधानसभा सीटें कम हैं, वहां पर विधान परिषद आकार नहीं ले सका.

क्या बदल जाएगा सीटों का फॉर्मूला?

संविधानविद् ज्ञानंत सिंह ने बताते हैं कि राज्यसभा और विधान परिषद की सीटों के लिए जिस तरह वोटिंग का फॉर्मूला लागू होता है. उसी तरह से उनकी सीटों को बढ़ाने का भी प्रवाधान है. ऐसे में जाहिर है कि परिसीमन से देश में लोकसभा और राज्य में विधानसभा की सीटें बढ़ेंगी तो दोनों ही जगह उच्च सदन की सीटें में भी बढ़ोत्तरी होगी. सिंह ने साफ किया कि मौजूदा समय सिर्फ देश के छह राज्यों में विधान परिषद हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना. पहले जम्मू-कश्मीर समेत सात राज्यों में विधान परिषद थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक-2019 के जरिए इसे समाप्त कर दिया गया और राज्य का दर्जा जम्मू-कश्मीर व लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील हो गया.

ज्ञानंत सिंह ने कहा कि अगर तत्काल सीटों को बढ़ाना है तो उसके लिए केंद्र सरकार को लोकसभा और विधानसभा में सीटें बढ़ाने का संविधान संशोधन करना होगा, उसके बाद ही यह संभव है. मान लीजिए कोई राज्य सरकार सर्वे कराकर केंद्र के पास रिपोर्ट भेजे और विधानसभा सीटें बढ़ाने की सिफारिश करे, जिस पर केंद्र भी सहमति दे दे तो ऐसे में सिर्फ संबंधित राज्य में सीटें बढ़ाने के लिए भी सरकार को संविधान संशोधन लाना होगा.

वह बताते हैं कि परिसीमन 2026 की सीमा को समाप्त करने के लिए 84वें संशोधन को शिथिल करके संसद 1991 या 2001 की जनगणना के आधार पर सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव लाना होगा. इसके अलावातीसरा रास्ता यह भी है कि 84वें संसोधन को सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में चुनौती दी जाए और याचिका में 84वें संसोधन को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया जाए, आगे कोर्ट पर निर्भर करता है कि वह उस संशोधन को निरस्त करे या फिर नहीं.

27 साल का इंतजार होगा खत्म!

बता दें कि विशेष सत्र में लोकसभा में पारित हो चुके विधेयक को उच्च सदन से हरी झंडी मिलने पर देश की आधी आबादी के लिए लोकसभा और विधानसभा में आरक्षण का रास्ता खुल जाएगा, लेकिन उन्हें एंट्री जनगणना और परिसीमन के बाद ही मिल सकेगी. 27 साल इंतजार कर रही महिलाओं को प्रतिनिधित्व में कोटा मिलेगा. हालांकि उन्हें इसके लिए कुछ साल और इंतजार करना होगा, जब तक कि परिसीमन नहीं हो जाता.