

विधायक वोरा ने उठाया निजी स्कूलों की मनमानी का मुद्दा
दुर्ग। विधायक अरुण वोरा ने प्रदेश में शिक्षा के अधिकार के तहत स्कूलों में प्रवेश पाने वाले बच्चों के स्कूल छोडऩे के मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है। उन्होंने इस संबंध में सरकार द्वारा ऐसे नियामक आयोग का गठन करने की मांग की जिससे शिक्षण शुल्क सरकार द्वारा वहन किए जाने के बावजूद ड्रेस व किताबों आदि के लिए निजी स्कूलों द्वारा की जा रही मनमानी फीस में भी लगाम लगाई जा सके। उन्होंने विधानसभा में स्कूल शिक्षा विभाग में लगाए गए अपने प्रश्न के उत्तर का हवाला देते हुए कहा कि, प्रदेश में शिक्षा के अधिकार (आरटीआई) के तहत् वर्ष 2012-13 से वर्ष 2019-20 तक लगभग 3 लाख छात्र-छात्राओं ने प्रदेश के 6 हजार से अधिक स्कूलों में प्रवेश लिया। किन्तु पिछले 8 वर्षो में 15 हजार से अधिक बच्चों को पढ़ाई छोडऩी पड़ी, क्योकि आरटीआई में दाखिल बच्चों का खर्च तो सरकार उठाती है लेकिन निजि स्कूल यूनिफार्म और कापी किताबों के नाम पर इतनी रकम की मांग करते है कि वहां बच्चों को पढ़ पाना संभव नहीं होता है और कमजोर वर्ग के बच्चों को स्कूल छोडऩा पड़ रहा है। आरटीआई के तहत् प्रवेश लेने वाले बच्चों को प्रायमरी क्लास में 7 हजार रुपए, मिडिल क्लास में 11400 रुपए वार्षिक खर्च किए जाते है। आरटीआई में दाखिल बच्चे अगर स्कूल छोड़े तो प्रबंधन को उसकी रिपोर्ट जिला शिक्षा अधिकारी को देनी होती है लेकिन हजारों बच्चों के पढ़ाई छोडऩे के बावजूद जिला शिक्षा अधिकारी के पास गिनती की रिपोर्ट ही पहुंचती है। आरटीई के तहत निजि स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों को कापी-किताब, यूनिफार्म, टाई बेल्ट, परिवहन आदि के लिए प्रतिवर्ष 10 से 15 हजार रुपए तक खर्च करना पड़ रहा है। जिसके कारण पालको में रोष है। शासन प्रशासन को आरटीआई के तहत् प्रवेश लेने वाले शत् प्रतिशत बच्चों के लिए ऐसी नीति बनाने की आवश्यकता है कि प्रदेश के हौनहार बच्चों को शिक्षा सत्र के दौरान पढ़ाई अधूरी नहीं छोडऩा पड़े।







