केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए फांसी की सजा की प्रक्रिया को स्पष्ट करने की मांग की है। सरकार ने याचिका में प्रक्रिया को दोषी के बजाय पीड़ित के हित पर केंद्रित करने की मांग की।rnrnसाथ ही गुहार लगाई कि फांसी की सजा पा चुके दोषियों को दया याचिका खारिज होने के अधिकतम 14 दिन और डेथ वारंट जारी होने के सात दिनों में गुनहगारों को फांसी देने का प्रावधान किया जाना चाहिए। सरकार ने यह भी कहा कि जब दोषी को पता हो कि उसे अंतत: फांसी ही होनी है तो मृत्युदंड में देरी उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के समान है।rnrnयाचिका में गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 2014 में शत्रुघ्न चौहान मामले में दिए फैसले में दिए गए दिशानिर्देशों को स्पष्ट करने की गुहार की है। आवेदन में कहा गया है कि शत्रुघ्न मामले में दोषियों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए दिशानिर्देश जारी किए गए थे, लेकिन इससे अधिक महत्वपूर्ण पीड़ित, पीड़ित परिवार का हित है।rnrnउस फैसले में पीड़ित व पीड़ित परिवार की मानसिक आघात, यातना, विप्लव व उन्माद को नजरअंदाज कर दिया गया था। अब समय आ गया है कि इनके हितों को ध्यान में रखते हुए दिशानिर्देश बनाने की जरूरत है।rnrnउस फैसले के कई वर्ष पहले और कई वर्षों के बाद भी जघन्य अपराध के दोषी अनुच्छेद-21(प्राण एवं दैहिक स्वंत्रतता का अधिकार) का सहारा लेकर न्यायिक प्रक्रियाओं का बेजा फायदा उठा रहे हैं। जनहित में यह जरूरी है कि नृशंस, जघन्य व भयावह अपराध के दोषियों को कानून के साथ खेलने के मौका न मिले।rnrnनिर्भया मामले के लिहाज से अहम है याचिकाrnकेंद्रीय गृहमंत्रालय की तरफ से दाखिल इस याचिका को 2012 के जघन्य निर्भया दुष्कर्म व हत्याकांड के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है, जिसमें चारों दोषी बार-बार रिव्यू, क्यूरेटिव और दया याचिका सरीखे कानूनी दांवपेचों की मदद से अपनी फांसी टालने में कामयाब हो रहे हैं।rnrnदोषियों को पहले 22 जनवरी को फांसी होनी थी, लेकिन एक दोषी मुकेश की दया याचिका के निपटारे में देरी से अन्य की फांसी भी टल गई। अब नए डेथ वारंट में 1 फरवरी की तारीख तय की गई है, लेकिन दोषियों के वकील पहले ही इसके खिलाफ क्यूरेटिव पिटिशन व अन्य दोषियों की दया याचिका जैसे हथकंडों को आजमाकर इस तारीख को भी फांसी टलवाने की बात कह चुके हैं।rnयह की है याचिका में गुहारrnरिव्यू पिटिशन खारिज होने के बाद क्यूरेटिव पिटीशन दायर करने की समय सीमा तय होrnडेथ वारंट जारी होने के सात दिन के भीतर दया याचिका दायर करने की समय सीमा तय होrnराष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के सात दिन में दोषी का डेथ वारंट जारी कर दिया जाएrnइस डेथ वारंट जारी होने के बाद अगले सात दिन के अंदर उसे फांसी दे दी जाएrnएक दोषी की फांसी पर उसके साथी दोषियों की रिव्यू या क्यूरेटिव पिटिशन या दया याचिका के लंबित होने का प्रभाव न होrnसुप्रीम कोर्ट की तरफ से तमाम अदालत, राज्य सरकार व जेल प्रशासन को निर्दश दिया जाएrnक्या था 2014 का शत्रुघ्न चौहान मामलाrnगृह मंत्रालय की ओर से दायर आवेदन में वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा शत्रुघ्न चौहान मामले में दिए फैसले में दिए दिशानिर्देशों को स्पष्ट करने की गुहार की है। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिकाओं का लंबे समय तक लंबित रहने के मद्देनजर कहा था कि लंबा इंतजार दोषियों के लिए मानसिक प्रताडना के समान है। साथ ही उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डेथ वारंट जारी होने और फांसी देने के बीच कम से कम 14 दिनों का अंतराल होना चाहिए।rnrnदुष्कर्म को बताया है सबसे जघन्य अपराधrnमंत्रालय ने याचिका में कहा है कि देश में आतंकवाद, दुष्कर्म व हत्या में मृत्युदंड का प्रावधान है। यह माना गया है कि दुष्कर्म का कृत्य न केवल आपराधिक है बल्कि देश की दंड संहिता में किसी भी सभ्य समाज के सबसे भयानक और अक्षम्य अपराध के तौर पर परिभाषित किया गया है। यह किसी महिला या समाज नहीं बल्कि मानवता के खिलाफ किया गया अपराध है।rnअलग-अलग जेल मैनुअल का भी मुद्दा उठायाrnसरकार ने कहा कि वैसे मामले में जहां कई दोषियों को फांसी की सजा दी गई हो तो ऐसा अक्सर होता है कि एक दोषी पुनर्विचार या सुधारात्मक याचिका दायर करता है। उसकी याचिका खारिज होने के बाद दूसरे दोषियों को यह सलाह दी जाती है या वह खुद आवेदन दाखिल कर अदालती कार्यवाही को शुरू करने में दिलचस्पी नहीं लेता।rnrnइसका कारण है कि अलग-अलग राज्यों के जेल मैनुअल में फांसी की सजा देने को लेकर अलग-अलग नियम है। कई जैन मैनुअल में दोषियों को एक साथ फांसी पर लटकाने का नियम है लेकिन कुछ जेल मैनुअल में एक-एक कर दोषियों को फांसी पर लटकाने का प्रावधान है। लिहाजा दोषी ऐसे प्रावधान की आड़ में कानून से खिलवाड़ करते हैं।

