दुर्ग। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गढ़ कलेवा आदि माध्यमों से परंपरागत छत्तीसगढ़ी व्यंजनों को बढ़ावा देने का जमीनी असर नजर आने लगा है। भिलाई में आयोजित सरस मेला में फूड कार्नर में आधे से अधिक स्टाल छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के लगाये गए थे और सभी में भारी भीड़ नजर आ रही थी। युवा पीढ़ी जिनके हाथों में साल भर पहले चाऊमीन के छुरी-कांटे होते थे, वे चीला का लुत्फ लेते नजर आ रहे थे। फ्रेंच फ्राई के दीवाने टमाटर की स्वादिष्ट चटनी के साथ फरा का लुत्फ ले रहे थे। फरा किसी ऐसे आयोजन का हिस्सा बनेगा, साल भर पहले यह सोचा जाना मुश्किल था। भिलाई जैसा शहर जो प्रकृति में कास्मोपालिटन है वहां भी अब लोग छत्तीसगढ़ी व्यंजन का लुत्फ ले रहे हैं। यहां स्वसहायता समूह का स्टाल चला रही और छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का विक्रय कर रही जया पिल्लै ने बताया कि चीला की बड़ी माँग है और हम लोग इसे सर्व कर रहे हैं। लोगों को तुरंत बनाकर सर्व करने में बहुत आनंद आता है। परंपरागत स्वाद के प्रति लोगों के मन में ऐसा जादू होगा, ये सोचा नहीं था, अब हमारा स्वसहायता समूह भिलाई के किसी महत्वपूर्ण मार्केट इलाके में शुद्ध छत्तीसगढ़ी व्यंजन की दुकान आरंभ करने के बारे में सोच रहा है। श्रीमती जया ने बताया कि जिला प्रशासन ने स्वसहायता समूहों को बढ़ावा देने यहां फूड स्टाल लगाने के लिए जगह दी। हम लोग हर दिन लगभग दो हजार रुपए की आय हासिल कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का आनंद लेते कल्याण कालेज के विद्यार्थियों के समूह ने बताया कि कुछ सालों पहले तक घर में फरा बनने का चलन था, कई दिन सुबह के नाश्ते में फरा खाते थे। संडे को चीला बनना तय रहता था। धीरे-धीरे यह चलन कब खत्म हो गया, पता नहीं चला। अरसे बाद अब पुन: अपने परंपरागत व्यंजनों का स्वाद ले रहे हैं। यह बहुत अच्छा है। धान का कटोरा होने की वजह से छत्तीसगढ़ी लोगों को चावल पसंद है। ऐसे में चावल के बने व्यंजन भी उन्हें बहुत भाते हैं। जो हमारे दूसरे प्रांतों के दोस्त हैं वे जिज्ञासावश पूछते थे कि तुम्हारा छत्तीसगढिय़ा व्यंजन क्या है, हम लोग बताते थे फरा, चीला। वो लोग पूछते थे, फिर दिखता क्यों नहीं, अब उनके भी प्रश्न समाप्त हो गये हैं। हम कभी दोसा खाते हैं और कभी चीला। कभी चाऊमीन खाते हैं तो कभी फ्रेंच फ्राई लेकिन चूंकि छत्तीसगढिय़ां हैं इसलिए सबसे ज्यादा लालच तो फरा और चीला को देखकर ही आता है और टमाटर की चटनी के साथ इसे खाना तो जन्नत की सैर करना है। आर्केस्ट्रा के मधुर संगीत के बीच अपने परंपरागत स्वाद को लेकर इन युवाओं को सुनना अद्भुत अनुभव था। छत्तीसगढ़ी व्यंजन अब घरों से निकलकर फूड पार्क में भी जगह बनाने लगे हैं और छत्तीसगढ़ी अस्मिता के लिए यह परिवर्तन स्वागत योग्य है।
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