

नई दिल्ली। सेना में अनुशासन को बनाए रखने के लिए मांग हो रही है कि समलैंगिकता और व्याभिचार को दंडनीय अपराध बनाए रखा जाए। उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल इन दोनों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था। हालांकि सेना के कानून के अतंर्गत यह अपराध की श्रेणी में बना रहे इसके लिए विकल्प तलाश किए जा रहे हैं।
एडुजेंट लेफ्टिनेंट जनरल अश्विनी कुमार ने अपनी सेनानिवृत्ति से एक दिन पहले बुधवार को पत्रकारों से बातचीत करते हुए यह बात की। उन्होंने कहा कि यदि सेना में इन संबंधों को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता है तो अनुशासन की गंभीर समस्या हो जाएगी। इससे जवानों को नियंत्रित करने में दिक्कत होगी। उन्होंने कहा भले ही कुछ फैसले कानूनी रूप से सही होते हों लेकिन वे नैतिक रूप से गलत हो सकते हैं। भारतीय सेना में एडुजेंट जनरल की शाखा जवानों के कल्याण का कामकाज देखती है। यह हर स्तर पर जवानों की शिकायतों को निपटाती है। लेफ्टिनेंट कुमार लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी हैं लेकिन उसके अधीन पांच लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी काम करते हैं। सेना में अपने साथी के पति का ध्यान या अपनी पत्नी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की जाती है तो इसे व्यभिचार माना जाता है जोकि एक गंभीर अपराध है। यह किसी भी जवान के लिए अशोभनीय है। इस अपराध को विश्वासघात माना जाता है जिसमें मौत तक की सजा दी जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने को बाध्य नहीं
लेफ्टिनेंट अश्विनी कुमार का कहना है कि उच्चतम न्यायालय के हर फैसले को माना जाएगा। वर्तमान तक सेना समलैंगिकता और व्याभिचार के मामलों का निपटारा अपने कानून के तहत करती रही है। इस साल की शुरुआत में सेना अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि समलैंगिकता और व्याभिचार को सेना में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
रुढि़वादी है सेना
शीर्ष अदालत की तरफ से व्याभिचार पर दिए गए फैसले को लेकर रावत ने कहा था कि इस मामले में सेना रुढि़वादी है। उन्होंने कहा था कि हम ऐसे पाप की इजाजत सेना में नहीं देंगे। जनरल रावत ने कहा कि सेना में ऐसी चीजों पर रोक है और सेना कानून के ऊपर नहीं है।
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